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अयोध्या, नगर निगम ने दावा किया है कि उसने पिछले तीन सालों में 18,731 पेड़ लगाए हैं और इनमें से 17,055 पेड़ आज भी ज़िंदा हैं। ये सुनकर कोई भी कहेगा – “वाह, क्या काम हुआ है!” लेकिन जब असली सवाल पूछे गए तो जवाब मिला “इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है।”सूचना के अधिकार (RTI) के तहत पूछा गया था कि ये पेड़ कहां-कहां लगाए गए, कौन-कौन सी प्रजातियाँ थीं और किसने देखरेख की? जवाब आया – “माली समय-समय पर देखता है।”अब ये माली कौन है? कहां काम करता है? इसका नाम क्या है? क्या इनके पास सुपरपावर है कि वो खुद समझ जाए पेड़ को पानी चाहिए या नहीं? जवाब – कुछ भी नहीं बताया गया।पूछा गया कि क्या पेड़ों की सिंचाई के लिए कभी टैंकर भेजे गए? कितनी बार? कहां-कहां?जवाब “इसका कोई रिकॉर्ड नहीं होता।” यानी ये सब कुछ अनुमान पर चलता है, जैसे कि बच्चों का होमवर्क – “किया तो था, लेकिन कॉपी घर पर छूट गई।”पेड़ों की देखभाल, सुरक्षा और पूजा जैसी बातों पर कितना खर्च हुआ? तो नगर निगम बोला – “एक भी पैसा खर्च नहीं हुआ।”तो क्या ये पेड़ खुद ही उगते हैं, खुद ही पनपते हैं, और खुद ही पूजा कर लेते हैं?और जब पूछा गया कि कहीं कोई वृक्षारोपण योजना विफल तो नहीं हुई? तो जवाब था – “कोई योजना विफल नहीं हुई।”क्योंकि जब कोई निगरानी नहीं, कोई रिपोर्ट नहीं, कोई ज़िम्मेदार अधिकारी नहीं, तो विफलता का सवाल ही कहां आता है!बजट के बारे में पूछा गया कि कितने पैसे आए और कहां खर्च हुए? जवाब – “अतिरिक्त बजट नहीं होता, माली कर देता है सब काम।”मतलब माली इस सिस्टम का हीरो है, जो बिना बजट, बिना रिकॉर्ड, बिना दिशा-निर्देश के काम कर रहा है — और जवाबदेही? उसका तो सवाल ही नहीं उठता!जनता अब पूछ रही है —
अगर इतने पेड़ लगे हैं, तो वो दिखते क्यों नहीं?अगर कोई रिकॉर्ड नहीं है, तो जवाबदेही कैसे तय होगी?नगर निगम की यह “हरियाली योजना” कागज़ों में तो हरी-भरी है, लेकिन ज़मीन पर तस्वीर कुछ और ही है।जवाबों से तो यही लगता है कि पेड़ लगाने की रिपोर्ट ज़्यादा सिंची गई है, असली पेड़ नहीं।अब ज़रूरत है सच्चाई की जांच की — ताकि हरियाली का सपना सिर्फ कागजों में न रहे, बल्कि अयोध्या की गलियों में भी दिखे।